उपेक्षा

कोरोना या कोविड-19, कितने समय से जानते हैं इस बीमारी के बारे में ? यही कोई 2 साल...और इतने कम समय में इसके इलाज के लिए कई सारे उपाय खोज लिए गए हैं जिसमे सबसे प्रभावी वैक्सीन को माना जा रहा है । कुछ लोग इस पर सवाल उठा सकते हैं कि अभी तक इसका कोई अचूक समाधान नहीं है पर फिर भी कुछ न कुछ है तो सही ना, कोई आपसे ये तो नहीं कह रहा ना कि ये तो होगा ही, आपके पास इसे सहने के अलावा कोई चारा नहीं। जब इतने कम समय में इस समस्या के लिए कुछ किया जा सकता है तो उस समस्या के लिए क्यों नहीं जिससे आधी दुनिया कहीं न कहीं परेशान है। और तो और ये समस्या कोई साल दो साल से नहीं बल्कि मानव के उत्पत्ति के साथ कि ही मानी जा सकती है। अब भी शायद नहीं समझे होंगे तो चलो मै बताती हूँ, वो है माहवारी। अब आप कहेंगे ये तो कोई समस्या नहीं है। तो, आपकी अधूरी जानकारी को विस्तार दीजिये और इस समस्या के प्रति सवेंदनशील बनिए। बेशक सभी महिलाओं को माहवारी के समय परेशानी नहीं होती पर कइयों को होती है और इनकी संख्या लगातार बढ़ रही है। माहवारी के दौरान महिलाओं को हार्मोन्स परिवर्तन के कारण जो मानसिक त्रास(मूड ऑफ) होता है उसे छोड़ भी दें तो उन्हें उल्टी, दस्त, घबराहट, बेचैनी, पैरों में खिंचाव, पेट कमर व अन्य हिस्सों में दर्द, चक्कर आना, कमजोरी जैसी कई समस्याएं होती हैं। इनके लिए कुछ दवाएं मौजूद है पर कई बार ये दवाएं असर नहीं करती और कई बार ये दवाएं लगातार खाने से इनका असर खत्म होता जाता है। कई महिलाओं की दर्द और तकलीफ इतनी बढ़ जाती है कि दर्द सहन सीमा से पार हो जाता है कई बार वे रातभर सो नहीं पातीं। इस दौरान होने वाली रक्त स्त्राव की समस्या को संभालने की बात तो हम कर ही नहीं रहे। पर दर्द का या इस दौरान होने वाली परेशानी को कम करने का क्या कोई इलाज नहीं हो सकता ? आपकी जानकारी के लिए बता दूं कि कोई भी स्त्री रोग विशेषज्ञ कुछ दर्द निवारक दवा लिखने के अलावा साफ शब्दों में यही कहती है कि ये दर्द या तकलीफ होगी ही सभी को सहन करनी पड़ती है। तो, आज के इस तीव्रगति से भागते आधुनिक युग में इस समस्या के लिए कुछ न किया जाना, क्या कहलाएगा उपेक्षा ही ना, और कुछ करना तो दूर कोई सोचता भी नहीं, कई लोग तो जानते तक नहीं। क्योंकि, महिलाएं हैं सहनशीलता की मूर्ति जिन्हें सिर्फ बच्चे के जन्म के समय ही नहीं बल्कि अपनी ज़िंदगी के लगभग 30 साल तक हरमाह दर्द झेलना पड़ता है। बड़े ही ताज़्जुब की बात है कि इसे सामान्य समझ कर इसकी पूर्णतः उपेक्षा की जाती रही है और आगे भी कोई आशा की किरण नज़र नहीं आती। आप मेडिकल साइंस शोधकर्ता नही हो तो कम से कम इस समस्या के प्रति संवेदनशील बनिए और महिलाओं का सम्मान कीजिये। उन्हें नाज़ुक और नादान समझ कर उन्हें पराधीन नहीं बनाइए उन्हें समझने का प्रयास कीजिये। महिलाएं किसी भी आधार पर कमतर नहीं बल्कि यदि सही आकलन किया जाए तो वे पुरुषों से आगे की निकलेंगी। किन्तु महिलाओं और पुरुषों के बीच हम यहाँ कोई रेस नहीं करवा रहें हैं बस बात बराबरी के हक की है। महिला और पुरुष समाज या जीवन के दो पहियों की भाँति हैं दोनों बराबर हैं और गाड़ी चलाए रखने के लिए इनमें समन्वय आवश्यक है।

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