Posts

Showing posts from 2016

लापरवाह की जगह बेपरवाह बनिए

Image
इस बार का जो विषय है वह मैने अख़बार में पढ़ा है । तो जिनका विचार है उन्हें धन्यवाद देते हुए और क्षमा मांगते हुए मैं इसे अपने ढंग से पेश करना चाहूँगी।   मेरे अनुमान से आप लोग लापरवाह शब्द से अच्छी तरह से वाकिफ़ होंगे और थोड़ा बहुत बेपरवाह शब्द से भी । तो मैं यहाँ बेपरवाह शब्द पर ही विशेष ध्यान देना चाहूँगी।   किसी भी काम को बेपरवाही से कीजिए लेकिन लापरवाही से नहीँ। मतलब काम को करते वक्त उसके परिणाम की परवाह कम कीजिए और अपनी मेहनत,  सतर्कता से काम करने पर अर्थात लापरवाही नही करने पर लगाइए। देखिए मेहनत करना अपने हाथ में होती हैं तो उसमें लापरवाही की गुंजाईश नही रखनी चाहिए जबकि फल अर्थात परिणाम में भगवान या आप जो भी नाम देना चाहें उसका हाथ होता है तो उसकी परवाह क्यों करना। गीता का वही सिद्धान्त, कर्म करो फल की चिंता छोड़ दो।   फल की चिंता आपको अपने कर्म से भटकाती है । और जब आप परिणाम का जिम्मा भगवान पर डाल देते हैं तो वह आपकी बेपरवाही देखकर ही लापरवाही से बचा लेता है ।   अपनी मेहनत से भगवान को भी सोचने पर मजबूर कर दो की इसे नही तो किसे दूँगा, इसे तो देना ही पड़ेगा।  

शब्दों का जादू.....

Image
शब्दो में जादू होता है शायद आपको ये पढ़कर थोड़ा अजीब लगे लेकिन कुछ उदाहरणों से आप बखूबी समझ जाएंगे। तो कुछ उदहारण देखिए -   -एक कपड़ो की दुकान में लिखा था "आप सीसीटीवी कैमरे की सुरक्षा में हैं । " -एक कैंटीन में बोर्ड लगा था " थैंक यू फ़ॉर नॉट स्मोकिंग (धूम्रपान न करने के लिए धन्यवाद)" -एक पान की दुकान पर लिखा था "उधार एक जादू है हम आपको देंगे और आप गायब हो जाएंगे" अच्छा, तो अब मेरे ख्याल से आपको मेरी बात समझ में आ गई होगी की मैं क्या कहना चाह रही हूँ। तो इस्तेमाल कीजिए इस जादू का और परिणाम देखिये, यक़ीनन आपको मज़ा आएगा। मान लीजिए आपका कोई दोस्त आपको एक ट्रीट के लिए चलने को कहता है तो उसे सीधे मना करने की बजाए धन्यवाद कहिए फिर थोड़ा ठहराव लेकर कहिए की पर आज तो नही हो पाएगा । इससे फायदा यह होगा की इस ठहराव में आपके दोस्त के चहरे पर मुस्कान बनी रहेगी और उसे ऐसा भी महसूस नही होगा की आपने सीधे मना कर दिया।   अपने इंटरव्यू के सीवी(cv) में इस प्रकार बता सकते हैं कि "मैं हॉरिजेन्टली टॉलर हूँ" । इससे आप अपनी कमजोरी को अलग तरह से पॉजिटिव बताने में सफल

आखिर क्यूँ मित्र हर रिश्तों से ज्यादा अहमियत रखता है

Image
आप में से हर किसी ने कहीं न कहीं ये लाइने पढ़ी या सुनी होगी की "दो अक्षर की "मौत" और तीन अक्षर के "जीवन" में  ढाई अक्षर का   " दोस्त " बाज़ी मार  जाता हैं.           साथ ही हर किसी की ज़िन्दगी में एक राज़दार की भूमिका अधिकतर एक दोस्त ही निभाता है और यदि ऐसा कोई नही है तो वो इंसान ऐसे दोस्त की तलाश में रहता है ।          आखिर क्यूँ हम अपनी अच्छी बुरी हर प्रकार की बातें बेझिझक दोस्त के सामने कह देते हैं । क्यूँ हर रिश्ते माँ, पिता, भाई, बहन, पति, पत्नी आदि सभी में एक दोस्त की छवि की दरकार रहती है ।           चलिये ऐसे ही कुछ सवालो के उत्तरो की चर्चा करते हैं। देखिये एक दोस्त दरअसल हर रिश्ते की परछाई होता है । वो बुरी बातों पर पिता की तरह सख्त होता है, तकलीफ़ में माँ की तरह देखभाल करता है, भाई की तरह मज़बूती से हमेशा साथ देता है तो बहन की तरह गलतियों पर सजा से बचाता भी है ।            लेकिन सबसे अहम बात की कभी जताता नही और ना ही आपके ढेर सारी बातें(राज़) जानने के बाद इनका गलत इस्तेमाल या उजागर करता है। आपकी किसी भी निजी समस्या(बात) का असर आपकी दोस्ती पर नह

‘आर्ट ऑफ़ इग्नोरिंग’

Image
साइंस और टेक्नोलॉजी पढ़ते-पढ़ते एक लॉजिक समझ आया, सोचा आपसे साझा कर लूँ | जोंस हॉपकिंस युनिवर्सिटी के द्वारा किये गए अध्ययन में ‘उपेक्षा की कला’ या ‘आर्ट ऑफ़ इग्नोरिंग’ के सार्थक परिणाम मिले हैं |       शोधकर्ताओं ने इसके लिए एक प्रयोग किया | दो समूह के लोगों को कंप्यूटर स्क्रीन पर विभिन्न रंगों में अक्षर दिए गए और कुछ निश्चित अक्षर (बी, एफ) तलाशने को कहा गया | एक समूह को कोई निर्देश नही दिया गया जबकि, दूसरे समूह से कहा गया की उन्हें लाल रंग के अक्षरों की उपेक्षा करनी है |       जिन व्यक्तियों (समूह) ने विचलित कर देने वाली सूचनाओं की स्पष्ट रूप से उपेक्षा की उनके द्रश्य (विसुअल) खोज प्रदर्शन में काफी सुधर देखा गया | यह कौशल रेडियोलाजिस्ट व् एयरपोर्ट बैगेज स्क्रीनर जैसे पेशेवर खोजकर्ताओं के लिए बहुत उपयोगी सिद्ध होगा |       खैर, मैं अब मुख्य बात पर आती हूँ | मैं इस रिसर्च के आधार पर कहना चाह रही हूँ की हमें भी ज़िन्दगी में ये लॉजिक यूज़ करना चाहिए | मसलन, हम नेगेटिव बातों, उत्साह तोड़ने वाले लोगों, छोटी-छोटी फिज़ूल की बातों जिन पर हम अक्सर गुस्सा हो जाया करतें हैं, अपनों की गलतियो

हिन्दुस्तानी हैं हम, हिन्दुस्तानी हैं..........................

Image
हिन्दुस्तानी हैं हम, हिन्दुस्तानी हैं..........................| ये एक पुराने विज्ञापन का थीम सोंग है शायद आप मे से कुछ को याद हो | जिसमें एस भारतीय जोड़ा तोहफे के रैपर (चमकीली पन्नी) को भी संभाल कर रखता है | मुझे तो बस इतना ही याद है और शायद यही पर्याप्त भी है |       यंहा मै यह कहना चाह रही हूँ की चीजो को पूरी तरह से उपयोग करना या कहें की बर्बाद न करना हम भारतियों की पहचान है | हालाँकि आज हमने इसे छोटे नजरिये से देखना शुरू कर दिया है |       आजकल हमारी प्रकृति कुछ एसी हो गई है की हम कोई वस्तु बिगड़ने पर उसे सुधरवाने की जगह नई लेना पसंद करते हैं | चाहे फिर वो एक साधारण सा पेन हो (जिसमे रिफिल डाली जा सकती है) या कोई इलेक्ट्रॉनिक गैजेट(मोबाइल,लैपटॉप,पंखा आदि), हम उसे सस्ते में बेचकर या कचरे में फेककर तुरंत नया ले आते हैं |       लेकिन इसमें गलती सिर्फ हमारी नही है | इसके लिए हमारी व्यस्त दिनचर्या के साथ-साथ कुछ और बातें भी जिम्मेदार हैं | पहली बात, वस्तुएं ही एसी आ रही हैं जिन्हें सिर्फ एक बार उपयोग कर फेकने की सिवा कोई विकल्प नही होता (पेन,टिशु पेपर,डिस्पोजल आदि) | दूसरी बा

अब किताबें और आत्मकथा पढ़ना आसान

Image
महान विभूतियों की आत्मकथा ( ऑटो-बायोग्राफी ) पढ़ने से हमें यह जानने का मौका मिलता है की उनकी सफ़लता या महानता के पीछे आखिर उनका संघर्ष व त्याग क्या रहा | और हम प्रेरित होतें हैं कठिनाइयों से लड़कर लक्ष्य प्राप्त करने के लिए |       इसलिए कहतें हैं यदि अपने जीवन के उतार-चढ़ाव से थक गए हो और दूसरों की उपलब्धि पर इर्ष्या हो रही है तो पहले उन उपलब्धियों के पिछे का संघर्ष देखो, देखो की किन- कीन परिस्थितियों से गुजराना पड़ा उन्हें |       तो रही बात आत्मकथा पढने की तो हम जैसे व्यस्त लोगों के लिए यह मुनासिब नही हो पाता की हम पहले तो पढने का विचार लायें (जो खुद अपने आप में बड़ी बात है) फिर उस पुस्तक पर रुपये खर्च करें फिर उसे साथ-साथ लेकर जाने की फजीहत ताकि जब, जहाँ समय मिले हम इसे पढ़कर समय गुजार (टाइम-पास) सकें | और बड़ी बात की इस समय पर तो हमने पहला और अंतिम हक़ अपने जान से प्यारे मोबाइल फ़ोन क्या दिया हुआ है क्या उसे बुरा नही लगेगा |       तो अगर वाकई में आपका मन है इस तरह की किताबें या नावेल आदि पढने का तो एक आपके मतलब का उपाय है की आप उससे सम्बंधित एप्लीकेशन (app) डाउनलोड कर लें जिनमे

AFEIAS युवाओं के लिए मददगार संस्थान

Image
आज के प्रतोयोगिता के दौर में सबसे बड़ी समस्या एक उच्च शिक्षित युवा की ज़िन्दगी है | क्यूंकि वो तथाकथित डिग्री धारी है तो कोई कुछ भी करें लेकिन उसे तो वाइट कॉलर नौकरी ही ढूढनी पड़ेगी चाहे उसकी दिली इच्छा व्यापर की हो या किसी और की | साथ ही समय का दबाव अलग से बिचारा आधा बुढ्ढा तो हो गया पढाई पूरी करने में लेकिन अब भी उसे भागना ही है उस रेस में जो कभी ख़त्म नही होने वाली |       इस रेस को जल्दी जीतने के लिए हम सहारा लेते हैं कोचिंग संस्थानों का ताकि प्रतियोगिता परीक्षा के चक्रव्यूह को जल्दी ध्वस्त को कर पायें जो एक हिसाब से आज की जरुरत बन गया है |       लेकिन कोचिंग संस्थानों के भ्रामक विज्ञापन तथा धोखे-बाजी से बचना भी जरुरी है | इसलिए इनका चुनाव बड़े ही सोच-विचार से करना चाहिए |       सबसे अच्छा तरीका हो सकता है यूटयूब पर डेमो लेक्चर देखो और फिर विचार करो की इनका पढ़ाने का तरीका आपको जंच रहा है या नही, पिछले स्टूडेंट्स के फीडबैक देखो | साथ ही आपकी आर्थिक स्तिथि ध्यान में रखते हुए मुफ्त किन्तु स्तरीय या कुछ छूट वाली संस्थाओं के बारे में भी खोजना चाहिए |       ऐसी ही एक संस्था( AFE

टैक्स चोरी इतनी आसान है क्या ???

Image
     हमारे देश के लगभग सवा करोड़ (1 %) लोगों के पास देश की कुल संपत्ति का 16 % है जबकि हाल ही में प्रकाशित सरकारी रिपोर्ट के अनुसार लगभग 18,000 लोगो ने ही अपनी संपत्ति 1 करोड़ से अधिक होना स्वीकारा है | मतलब देश में सिर्फ कुछ ही लोग करोडपति हैं ? इसका जवाब तो हम सभी अच्छे से समझतें हैं |       खैर , मैं यहाँ आपको आंकड़ो के फेर में उलझाना नही चाह रही बस आप इस अंतर को अच्छे से समझें इसलिए मैंने इनका सहारा लिया | जरा सोचिये शायद हमारे देश के अमीर अरबपति तो हैं लेकिन करोडपति नही, इसलिए वे आयकर नही भरते ???       एक साधारण नौकरी पेशा व्यक्ति(सरकारी व गैर-सरकारी) यदि उसके अन्य आय को न देखें तो, अपनी तनख्वाह का आयकर TDS (आम भाषा में कार्यालय द्वारा ही कर्मचारी का टैक्स भरना ) आदि के माध्यम से भर ही देता है| अब बात करें व्यापारी वर्ग की तो मुझे उनके विषय में ज्यादा जानकारी नही है |       मेरे एक परिचित से चर्चा के दौरान उन्होंने बताया की एक बड़े व्यापारी को बैंक का लेन-देन तो करना ही पड़ता है मतलब पेन कार्ड के माध्यम से उसकी निगरानी काफी हद तक संभव है | पर जब टैक्स भरने की बारी आती है

अजीब विचार.....

Image
            आज के ज़माने में आप जो सोच सकते हैं वो कर भी सकतें हैं | मैंने जब पहली बार भूगोल में बारिश की संकल्पना (कांसेप्ट) पढी थी की पहाड़ो से टकराकर भी बारिश होती है तब मैंने सोचा था की हमें भी राजस्थान में पहाड़ बना देना चाहिए |             राजस्थान में बारिश की कमी है जबकि वहाँ अरावली पर्वत की लम्बी श्रंखला है | ऐसा इसलिए है क्यूंकि ये पर्वत श्रंखला दक्षिण-पश्चिम मानसूनी हवाओं के सामानांतर आती है अर्थात मानसून उनसे टकराता नही बल्कि उसके साथ-साथ होकर गुजर जाता है | खैर मैं यहाँ आपसे सच में पहाड़ बनाने की बात नही कह रही हूँ क्यूंकि वो खर्चीला तो हे ही साथ में हमें यह भी देखना होगा की अगर मानसून की बारिश यहाँ हो गई तो आगे के हिस्सों में समस्या न आ जाये |              उस समय मैंने सोचा था की यह विचार अच्छा तो है किन्तु व्यावहारिक नही है | अभी-अभी मेने अख़बार मैं पढ़ा की सउदी अरब बारिश की संभावना बढाने हेतु पहाड़ बनाने की योजना पर काम कर रहा है | दरअसल सउदी अरब में बारिश बेहद कम होती है जिसके लिए वह कई बार कृत्रिम बारिश की सहायता भी ले चुका है और अब वह इस परियोजना के लिए पहाड़

बूँद-बूँद से दुनिया के महासागर न सही एक घड़ा तो भरिये !!!

Image
आप लोगो को कुछ नही करना तो मत कीजिये लेकिन जो कुछ कर रहें हैं कम-से-कम उन्हें तो मत टोकिये |             मैं सुन-सुनकर थक चुकी हूँ की “ इससे कुछ फर्क नही पढ़ने वाला है ” | देखो कुछ समझ नही आया न | दरअसल बात ये है की छोटी-छोटी आदतें जैसे फ़िज़ूल बिजली खर्च न करना, छोटे-मोटे कामो में पानी बचाना, पैदल जाना या सार्वजनिक वाहनों का प्रयोग करना, पेपर कम बर्बाद करना, आदि को अपनाने वाले लोगो को अधिकांशतः कंजूस कहा जाता है या उनका मखौल उडाया जाता है | कहतें हैं की तुम्हारे अकेले के यह सब करने से कुछ फर्क नही पढने वाला अकेला चना भाड नही फोड़ सकता |             इस सन्दर्भ में आपको एक छोटी-सी कहानी सुनाना चाहूंगी | एक महिला समुद्र किनारे खड़ी थी जिसे पास खडा एक किशोर काफी देर से देख रहा था | वह महिला किनारे पर पानी के बाहर आकर मर रही मछलियों को वापस समुद्र मैं फेंककर बचाने की कोशिश कर रही थी | किशोर ने आखिर महिला से पुछ ही लिया ऐसा करने से क्या होगा? इतनी सारी मछलियों के आगे केवल कुछ को बचाना कुछ मायने नही रखता | तब महिला बोली इस एक मछली के लिए यह बहुत मायने रखता है जिसे मैं बचा सकती हूँ |  

आखिर क्यों बचाऊँ मैं पानी ???

Image
देश में पानी की कमी आजकल सुर्ख़ियों का विषय बनी हुआ है | लेकिन हम में से कितने लोग इस विषय को गंभीरता से लेकर स्वयं जल संरक्षण के बारे में सोचते है |             आपके सब के बारें में सटीकता से नही कह सकती इसलिए मेरी ही बात करती हूँ अख़बारों में पानी के लिए जान जोखिम में डालते लोगों (विशेषकर महिलाओं व बच्चों ) की तस्वीरें देखकर मुझे दुःख होता है | लेकिन सिर्फ चंद ही मिनिटों में यह न जाने कहाँ गायब भी हो जाता है | जब इस बारें में मैंने सोचा तो, एक विचार आया की यदि पानी हम न सहेजें तो अर्थात घरों में इस्तेमाल के बाद निकलने वाला पानी, बारिश का पानी आदि जाकर कहीं न कहीं जमीन में या नालियों के माध्यम से निश्चित जगह ही तो जाता होगा | तो फिर समस्या क्या है पानी बर्बाद करने में ? क्यूंकि पानी जमीन में जाने से भूजल स्तर बढेगा और नालियों में जाने वाले पानी का ट्रीटमेंट कर उसे पुनः उपयोग में लाया जा सकता है |             काफी दिनों तक मेरी विचारधारा यही बनी रही लेकिन फिर जब  मैंने कहीं पर  एक लेख पढ़ा तब जाकर बात स्पष्ट रूप से समझ आई की मैं कितनी गलत थी |             दरअसल समस्या यह है की

"लिख कर देखो अच्छा लगता है "

Image
             लिख कर देखो अच्छा लगता है, मेरा आजमाया हुआ है | जब भी आपका मन विचलित हो, किसी बात को लेकर दिमाग ख़राब हो रहा हो या गुस्सा आ रहा हो तो उसे लिख डालिए | ऐसा करने से आपका दिमाग शांत हो जायेगा और गुस्सा भी न जाने कहाँ काफूर हो जायेगा |             यदि आप डायरी लिखतें हैं तो उसमे और यदि नही लिखते तो किसी भी कागज़ पर लिख दीजिये | साथ ही यदि आपको लगता है की बात कुछ गंभीर व निजी है जो आप स्वयं तक ही सिमित रखना चाहते हैं तो लिखने के बाद उन कागजों को जला दीजिये | हाँ , अगर थोडा परफेक्शन से कम लें तो आप अपने विचारों को उपयोगी भी बना सकतें हैं | इसके लिए अपनी बात को थोडा सामाजिक परिवेश में रखकर लिखिए जो लगभग सभी पर लागू होती हो इस तरीके से आप तारीफ भी पाएंगे और शायद कुछ पैसे भी कमा लेंगे |             यह तरीका आपके आवेश को जरुर शांत कर देगा और जब बाद में आप अपनी लीखी बात पड़ेंगे तो शायद आपको हंसीं आये की कितनी छोटी बात थी | साथ ही इसे पढ़कर आप खुदको अच्छे से समझ पाएंगे, समझ पाएंगे की आवेग में कैसे-कैसे विचार आपके दिमाग में आतें हैं ओर खुद पर कैसे अच्छे से नियंत्रण रखना है  |

दोस्तों के साथ घुमने जाएँ कैमरे के साथ नही !!!

Image
                             पिछले रविवार में अपने दोस्तों के साथ घुमने गई थी, काफी मज़ा आया लेकिन बाद में हमें महसूस हुआ की वास्तव में हमने क्या घूमा ? हमने अपना 90 % से ज्यादा समय तो सिर्फ फोटो खीचने में लगा दिया |               दरअसल आज-कल सभी लोगो में ( जिसमे में भी सम्मिलित हूँ ) फोटो खिचवाने का भूत सवार हो चुका है, हम हर जगह(लोकेशंस) पर फोटो खीचाना चाहते है | फिर उन्हें सोशल साइट्स पर अपलोड करने तक हम दम नही लेते, जैसे कोई प्रतिस्पर्धा चल रही हो |             हम सुन्दर द्रश्यों को अपनी आँखों से देखने की बजाये कैमरे की आँखों से देखने लगें हैं और उस वक्त भी हमारा ध्यान (फोकस) फोटो खीचा रहे तो व्यक्ति पर होता है न की नज़ारों पर | फिर घर उन खिचीं गई तस्वीरों से ही हम वंहा के द्रश्यों को याद रख पातें हैं |             अगर यह तरीका अच्छा है तो फिर तो हमें कंही घुमे जाने की जरुरत ही नही है हमारे लिए  एक-दुसरे की तस्वीरों के बैकग्राउंड देखना ही काफी है और रही बात स्वयं की तस्वीरों की तो वो भी कट-पेस्ट(एडिटिंग) सॉफ्टवेयर द्वारा आसानी से किया जा सकता है |  तो ऐसे आपका समय

थोड़ी अज्ञानता भी अच्छी है

Image
              मैंने एक फिल्म देखी NH- 10 | मुझे काफी पसंद आई क्योंकि मेरे लिए वो शोकिंग किस्म की थी क्योंकि उसमे मैं जब भी अंदाजा लगाती की अब एसा होगा तो वह हमेशा गलत निकलता   | खैर अब मुद्दे पर आतें है मैं यंहा आपको इस फिल्म की समीक्षा देने तो बैठी नही हूँ इसकी चर्चा तो मेने इसलिए की क्योंकि यंही से मेरे मन में एक विचार उठा था |               इस फिल्म में जब पुलिस अफसर जीब चलाते हुए अभिनेत्री से बातें करता है तो बातों ही बातों में उससे पुछता है की आपकी जाति क्या है ? आपकी गोत्र क्या है ? अभिनेत्री का जवाब होता है मुझे नही पता |               संवाद चाहे जो भी हो या जिस भी अर्थ में हो मुझे इस द्रश्य से एक विचार आया की हम में से अधिकतर लोगो को इन( फिल्म के पुलिस अफसर के ) प्रश्नों के उत्तर मालूम होंगे और अगर मैं सही हूँ तो अधिकांश मध्यम वर्गीय और निम्न वर्गीय परिवारों को इन प्रश्नों के जवाब रटें हुए होंगे साथ ही शायद (फिल्म में देखकर लगा) उच्च वर्गीय परिवारों में से कम को ही इनके जवाब पता हों ? विचार यह है की अगर हम धीरे-धीरे इन सब जवाबों से अज्ञानी बन जाएँ तो ? मेरा कहने

किसान vs. PM

Image
              नही नही यंहा शीर्षक का अर्थ किसान vs. प्राइममिनिस्टर नही बल्कि मैं तो यहाँ किसानो तथा pm अर्थात् particulate matter की बात करने जा रही हूँ | अगर हम pm को आम भाषा में समझना चाहें तो यह हवा में प्रदुषण के छोटे-छोटे कण है | यह प्रदूषित वातावरण का स्तर जानने में कम में आता है |               आज शाम के वक्त जब मैं अपने आँगन में गई तो मुझे सभी ओर काले-काले टुकडे दिखाई दिए लगभग सभी पाठक इनसे रूबरू हए ही होंगे ओर जानते होंगे की यह खेतो के जलाने से उड़े कण है | आज दिल्ली समेत देश के कई बढे शहर प्रदुषण (pm) की समस्या से जूझ रहे है जिसमे ये कण समस्या को अधिक बाढा देते हैं |                            खेतो में गेंहू की फसल काटने के बाद जो पौधो के तने (ठूंठ) शेष रहते है (इन्हें नरवाई भी कहते हैं) उन्हें अक्सर जला कर साफ़ किया जाता है |               लेकिन इतना शोर-शराबा होने के बाद भी किसान मानते क्यों नही ? क्यों वे खेतों में आग लगा कर ही नरवाई से निजात पाना चाहते हैं ?               सुना है की इनसे तो खेत हंकवाकर अर्थात् हल चलवाकर भी इनसे आसानी से छुटकारा पाया

नजरिया आपकी सोच बदल सकता है

Image
नजरिया सबकुछ बदलकर रख देता है | इसी के चलते घरवालो का फिक्र करना  आपको रोक-टोक लगने लगता है |       जरा सोचें की अगर यह सब बंद हो जाये तो, यकीन मानिये, एक दिन आपको बुरा लगने लगेगा की मुझे कोई पूछने वाला नही है, सुबह से मैंने कुछ खाया की नही ? कहाँ हूँ कहाँ नही किसी को परवाह ही नही है ? तब आपको समझ आएगा की इन सब बातों की क्या कीमत होती है |       देखा जाए तो अक्सर लडको के मामले में फिक्र से सम्बंधित यही छोटी-मोटी बातें उनके द्वारा रोक-टोक के तौर पर देखी जाती हैं वहीँ लड़कियों के मामले इसका ठीक उलटा होता है यहाँ कई बार बड़े-बड़े बंधन फिक्र के नाम पर उनपर लाध दिए जातें है जिन्हें वे सहर्ष स्वीकारती है | कई बार उन्हें इल्म भी नही होता की उनका जीवन उनका ही नही रह गया वो तो बस हर किसी की आज्ञापालक और सबको संतुष्ट रखने की कोशिश करने वाली बनकर रह गई है | लेकिन इसमें यह बात भी देखी जानी जरुरी है की माँ-बाप को लड़कियों की ज्यादा फिक्र है अथार्त वे उन्हें ज्यादा प्रेम करते है और उन्हें हर मुसीबत से सुरक्षित रखना चाहते है, हर परिस्थिति में लड़ना सिखाना चाहतें हैं |      

क्या आप गाँधी बन सकते है ?

Image
मैंने एक वाक्य सुना की अरे वो अंग्रेजो का जमाना था, हम गुलाम थे उन परिस्थितियों के वशीभूत गाँधी जी ने सब किया | मतलब अगर हम भी उनकी जगह होते तो उनके जैसा काम करके दिखा सकते थे |             जरा सोचिऐ गाँधी जी को क्या जरुरत थी अंग्रेजो से लड़ने की वो तो एक वकील थे चाहते तो आराम से वकालत करके अच्छा जीवन बिता सकते थे | और इसी तरह बहुत से अन्य क्रन्तिकारी जैसे नेहरु, आज़ाद, सुभाष चन्द्र बोस रईस खानदान से थे, बोस तो सिविल सर्वेंट जैसे उच्च पद भी पा चुके थे फिर आखिर क्या चाहिए था उन्हें ?             फिर भी अगर आप में से किसी को लगता हे की कोई बड़ी बात नही है, तो ठीक  है आप जरा आज की परिस्थितियों पर गौर फरमाइए क्या कुछ गलत नही हो रहा ? सब कुछ ठीक है ? अगर नही तो आप क्यों आराम से बैठे हुए है बनकर दिखाइए गाँधी ! करिए आन्दोलन, विरोध प्रदर्शन, जाइये जेल, खाइए लाठियां | क्या लगता है कर पायंगे आप ? चलिए ये सब नहीं तो कुछ आसान ही कर लिजिए जो कुछ कर रहें हैं उनका साथ देकर |             यदि हाँ तो शुक्रिया इतना सोचने भर के लिए और यदि नही तो कृपया बोलने से पहले जरा सोचिये

क्या आप जानते हैं हाड्रोजेल के बारे में ?

Image
इस तकनीक के माध्यम से आपको पौधो यहाँ तक की फसलों में भी एक बार पानी डालने के बाद ढाई से तीन महीने तक पानी डालने की जरुरत नही |             यह कोई ड्रिप प्रणाली या पानी के चक्रीय क्रम की कोई तकनीक भी नही है यह संभव है पूसा   हाड्रोजेल की मदद से | आइये जानते हैं इसके बारे में,             आप में से अधिकतर लोगो ने बेम्बू (बांस) प्लांट को ख़रीदा या देखा जरुर होगा जिसे हम इनडोर प्लांट के रूप में जानते हैं | मेने भी इस सुन्दर प्लांट को एक सुपर मार्केट से ख़रीदा लेकीन मुझे इसे दूसरे शहर ले जाना था वो भी ट्रेन से, तो मुझे फिक्र हुई की यह सफ़र के दौरान सुख कर ख़राब न हो जाये | फिर जब मेने उसकी जड़ों पर गौर किया तो उसमे एक प्रकार का चिपचिपा जेल लगा हुआ था समझ नही आया की यह क्या है तो मेने सोचा शॉप पर भी तो यह काफी दिनों से बिना पानी रखा होगा तो किसी तरह घर भी सुरक्षित पहुच ही जायेगा |             लेकिन कई दिनों बाद जब मैं अख़बार पढ़ रही थी तो मेने इस जेल के बारे में पढ़ा तब जाकर यह माजरा समझ आया |   Ø आखिर क्या हे यह जेल ?     - यह इंडियन काउंसिल ऑफ़ कल्चर रिसर्च