लापरवाह की जगह बेपरवाह बनिए
इस बार का जो विषय है वह मैने अख़बार में पढ़ा है । तो जिनका विचार है उन्हें धन्यवाद देते हुए और क्षमा मांगते हुए मैं इसे अपने ढंग से पेश करना चाहूँगी। मेरे अनुमान से आप लोग लापरवाह शब्द से अच्छी तरह से वाकिफ़ होंगे और थोड़ा बहुत बेपरवाह शब्द से भी । तो मैं यहाँ बेपरवाह शब्द पर ही विशेष ध्यान देना चाहूँगी। किसी भी काम को बेपरवाही से कीजिए लेकिन लापरवाही से नहीँ। मतलब काम को करते वक्त उसके परिणाम की परवाह कम कीजिए और अपनी मेहनत, सतर्कता से काम करने पर अर्थात लापरवाही नही करने पर लगाइए। देखिए मेहनत करना अपने हाथ में होती हैं तो उसमें लापरवाही की गुंजाईश नही रखनी चाहिए जबकि फल अर्थात परिणाम में भगवान या आप जो भी नाम देना चाहें उसका हाथ होता है तो उसकी परवाह क्यों करना। गीता का वही सिद्धान्त, कर्म करो फल की चिंता छोड़ दो। फल की चिंता आपको अपने कर्म से भटकाती है । और जब आप परिणाम का जिम्मा भगवान पर डाल देते हैं तो वह आपकी बेपरवाही देखकर ही लापरवाही से बचा लेता है । अपनी मेहनत से भगवान को भी सोचने पर मजबूर कर दो की इसे नही तो किसे दूँगा, इसे तो देना ही पड़ेगा।