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Showing posts from February, 2021

ज़िन्दगी के उसूल

हर व्यक्ति के कुछ मूल्य होते हैं कुछ उसूल होते हैं जिनके आधार पर वह जीवन जीता है। ये साधारण सी बात है और अच्छी भी पर क्या होता है जब आप अपने उसूलों के आधार पर दूसरों को आँकना(जज करना) शुरू करते हैं, वो भी लोगो के बाह्य स्वरूप या उनकी कुछ आदतों के आधार पर। ये कहाँ तक सही है ? सही गलत के फैसले के लिए मैं अपने कुछ अनुभव साझा करना चाहूँगी। मै और मेरी दोस्त पढ़ने के लिए एक बड़े शहर में गए और हम छोटे शहर के मध्यम वर्गीय परिवार से ताल्लुक रखते हैं। हम वहाँ जिस जगह रहते थे उसमें आठ से दस लड़कियाँ थीं । सभी काफी अलग थीं हमें वहाँ शुरू में काफी अजीब लगता था उन लड़कियों का पहनावा उनके द्वारा फ़ोन पर लड़कों से बात करना और हम तो हतप्रभ रह गए जब उन्होंने हमसे पूछा तुम्हारा bf है ? ये सवाल जैसे हम पर वज्र की तरह गिरा, ऐसा लगा जैसे किसी ने हमारा अपमान कर दिया हो । आखिर वो हमें ऐसा कैसे समझ सकतें हैं ? "ऐसा" क्या मतलब है इस शब्द का क्या सोचते थे हम उन लड़कियों के बारे में, कभी तो ये गाना गाते थे हम अपनी स्थिति पर की "ये कहाँ आ गए हम.." मतलब साफ था अपने पैमाने , अपनी सोच के आ

इच्छाएँ और आत्म नियंत्रण

  कहते हैं इच्छाएँ व्यक्ति को गुलाम बना देती है तथा इच्छाएँ ही मनुष्य के दुःख का कारण भी हैं। वहीं, आत्म नियंत्रण व्यक्ति को गंभीर, विवेकशील और सन्तुलित बनाता है।   मेरे अनुसार ये दोनों ही एक दूसरे के बिना अपूर्ण हैं। इच्छाओं की अनुपस्थिति व्यक्ति को अकर्मण्य और आलसी बना देगी तथा जीवन काफी नीरस हो जाएगा वहीं आत्म नियंत्रण की अधिकता व्यक्ति को जोखिम उठाने से रोकेगी साथ ही उसे लचीला(डायनामिक) की बजाए कट्टर(रिजिड)  बना देगी।  अतः, दोनों में समन्वय व सन्तुलन आवश्यक है इच्छाएँ यदि आत्म नियंत्रण के साथ कि जाए तो व्यक्ति अधिक खुशहाल जीवन जी सकता है।   आप इसे किसी गाड़ी के इंजन और ब्रेक के समान समझ सकते हैं जीवन की गाड़ी में इच्छाएँ इंजन है, तो आत्म नियंत्रण ब्रेक। ब्रेक की मौजूदगी ही गाड़ी के इंजन को रफ्तार पकड़ने का आत्मविश्वास दे सकती है और इसी प्रकार इंजन के बिना ब्रेक का कोई अर्थ नहीं ।  इसलिए व्यक्ति को जीवन मे इन दोनों में उचित सन्तुलन बनाना चाहिए। कहते हैं जहां चाह वहाँ राह इसलिए चाह करना पहली सीढ़ी है। इसमें आत्म नियंत्रण उस चाहत को पाने के मार्ग में भटकाव को तो रोकेगा ही साथ ही अवांछित चा

रात के बाद ही तो सवेरा होता है🌞

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 सुबह....सुबह शब्द अपने आप में ही कितनी संभावनाएं, कितनी ऊर्जा, कितनी सकारात्मकता समेटे है। सुबह हम जब हम गुड मॉर्निंग विश करते हैं कैसा भी मूड हो अच्छा महसूस होता है एक नई आशा मिलती है।  ये नई आशा की किरण हमे हर मुसीबत में धैर्यवान रखती है, एक आवाज़ आती हो जैसे अंदर से "सब ठीक हो जाएगा" और ठीक हो भी जाता है, और कभी नहीं भी होता तो हम उसे ठीक मानने लगते है मतलब अपनाने लगते हैं स्वीकार करने लगते हैं। इस तरह ये एक दिलासे की तरह है जो हमे प्रकृति से मिलता है।  प्रकृति से मिलता है अतः यह हमेशा मौजूद होगा और अपरिहार्य रूप से सत्य भी होगा। इस तरह यह अपरिहार्य सत्य है कि हर शाम के बाद सुबह आएगी ही और वो सुबह हमे बाह्य के साथ-साथ आंतरिक ऊर्जा और प्रकाश देगी।   इसलिए जब आप बहुत मुश्किल में हों कोई रास्ता नहीं नज़र आ रहा हो कोई शब्द या कोई वाक्य ऐसा न हो जो आपको उम्मीद दे सके याद रखिए हर रात की सुबह होती है कुछ मत कीजिये बस इंतज़ार कीजिए।  विश्वास रखिए कि " दिल नाउम्मीद नहीं नाकाम ही तो है,  लम्बी है गम की शाम, लेकिन शाम ही तो है"  मतलब सुबह जरूर होगी।