शहीद....योद्धा...वीर...रंगों के पीछे का स्याह पक्ष ?
शहीद, योद्धा, वीर इस तरह के शब्द सुनते ही किसकी छवि आती है आपके मन में ? शहीद भगतसिंह, योद्धा झांसी की रानी, वीर शिवाजी...इसी तरह के नाम आपके ज़हन में आते होंगे। बेशक आने भी चाहिए क्योंकि ये हस्तियाँ अपने जज़्बे, अपने काम से स्वयं को अमर कर गई। यहाँ बात किसी पर सवाल उठाने की नहीं है। बात सिर्फ एक उपेक्षित मुद्दे पर ध्यान आकर्षित करने की है। ज़ाहिर तौर पर बहुत लोगो की भावनाएं उपरोक्त नामों से जुड़ी है और बता दूं कि उनमें मैं भी शामिल हूँ। इन सभी का बिना किसी शर्त सम्मान करते हुए मैं अपनी बात रखना चाहूँगी। दरअसल मसला यह है कि इतिहास पढ़ते हुए एक विचार दिमाग में कौंधा। फ़लाँ राजा की बेटी का विवाह सन्धि के तहत किसी राजा से कर दिया गया, राज्य जीतने पर पराजित राजा की रानियाँ अधीन कर ली गईं, सौदे या समझौते में महिलाओं को वस्तु की तरह लिया गया। क्या ये सब बातें आपको सोचने पर मजबूर नहीं करती ? किसी राज्य की सुरक्षा या भलाई हेतु एक राजकुमारी या किसी भी महिला को सौंप दिया जाता है किन्ही भी हाथों में, यहाँ सवाल संबंधित राजा की मजबूरी या राष्ट्र की भलाई या व्यवहारिक रास्ते का नहीं। सवाल है महिला के