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Showing posts from 2019

कुछ कठोर सवाल...

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हम आज एक समस्या पर कुछ सवाल दागेंगें लेकिन उसके लिए पहले समस्या का ज़िक्र जरूरी है। ये समस्या वो है जिसका नाम लेने में भी हमें शर्म महसूस होती है "बलात्कार"! तो, कोई ऐसा कर कैसे सकता है समझ से परे है।   इस समस्या के लिए दोषियों से ज्यादा लड़की की लापरवाही, उसके अकेले निकलने, यहाँ तक कि उसके पहनावे हर बात को कोसना खत्म हो गया हो तो आगे बात करते हैं।   हम यहाँ समस्या के एक पहलू को ही उठाएंगे ताकि एक ही बात का विश्लेषण अच्छे से कर सकें। इसलिए हम समस्या के अन्य कारणों का ज़िक्र यहाँ नहीं कर रहे हैं लेकिन जो कारण यहाँ लिया जा रहा है वो भी अपने आप मे कम नहीं है, बशर्ते आप ईमानदारी से मंथन करें।  हाँ, तो क्या कोई इंसान सच में दरिंदों की तरह व्यवहार कर सकता है ? क्या उनके दिल में ज़रा भी रहम नहीं आता ऐसा कुकृत्य करते वक्त ?  अपने आस-पास घर में, चौराहे पर, सड़कों पर, बाज़ारों में,लोगो की अच्छी-बुरी हर तरह की नागाहों से सामना हुआ है मेरा,और यकीनन हर लड़की का हुआ होगा।   इनमें से बुरी निगाहों की तीव्रता में अंतर समझ आता है । लेकिन इनमें से ज्यादातर निगाहें अंधेरा होने प

आप कब खुश होते हैं ?

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आपसे कोई पूछे कि आप क्या देखकर या क्या पाकर खुश होगें या की क्या चीज आपको खुश कर सकती है ? आपका जवाब क्या होगा नौकरी, शादी, पैसा, घर आदि-आदि शायद अधिकांश का जवाब कुछ इसी तरह का होगा। अब वो मिलने के बाद भी आप खुश होतें हैं या नही,आज मुद्दा वो नहीं है।   दरअसल आज मुद्दा है कि आप इतना इंतज़ार क्यों करेंगे खुश होने का, मतलब ज़ाहिर है कि ये सारी चीजें प्राप्त करने में समय लगता है तो तब तक क्या ? मेरा तात्पर्य यह है कि आप अपने आस पास की बहुत सी छोटी-छोटी चीजों से भी खुश हो सकते हैं और फिर खुशी-खुशी कीजियेगा कोशिश अपनी अपेक्षाकृत बड़ी खुशियां पाने का। अपनी पसंद की चीजों की सूची बनाइए और कोशिश कीजिये इस सूची में शामिल चीजें जितनी हो सके उतनी छोटी व आसान हो। अपनी पसंद की चीजें शामिल करने का मकसद है कि उनसे आपके चेहरे पर मुस्कान आती है या आपको खुशी मिलती है। वैसे ही जैसे मान लो आपको गुलाब पसन्द हों और कोई आपके लिए गुलाब का बुके ले आये आपकी प्रतिक्रिया कैसी होगी ? दिल खुश और नतीज़तन एक प्यारी सी मुस्कान जो वास्तविक(नेचुरल) होगी । ये सूची बनाने से होगा यह कि आपको समझ आएगा कि ऐसी बहुत सी चीजे

अनसुलझी पहेली और आदर्शवादी जवाब..

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शीर्षक की तरह ही है आज का मुद्दा कुछ अनसुलझा सा। क्या आप लोगो के दिमाग मे कभी ये ख़याल आया है कि हमारे आस पास के कुछ लोग ऐसे क्यूँ हैं ? ऐसे मतलब जो इंसानियत से पहले किसी और चीज़ को तवज्जो देते हैं जैसे धन, ओहदा आदि।    इन लोगो की समझदारी पर आश्चर्य होता है कि कैसे - कैसे तरीकों को अपनाते हैं ये लोग अपने फायदे के लिए। लेकिन मुझे समझ नही आता कि ये आखिरकार इनके लिए फायदेमंद होता भी है या नहीं।   ये लोग तात्कालिक फायदे को ही हमेशा नज़र में कैसे रख सकते हैं। क्या गलत तरीके से कमाया गया पैसा या फायदा उनकी आने वाली पीढ़ी को आरामपसंद औऱ कामचोर बनाने की राह पर नहीं ले जाता। वो क्या उसूल पेश करते होंगे अपने बच्चों के आगे, क्या ये ही बच्चे भविष्य में पैसे के आगे अपने बूढ़े माता पिता को तवज्जो देंगें।   मेरा ख़याल है अपने जीवन मे हमे कम से कम कुछ अच्छे कर्म तो करने ही चाहिए जिनकी मिसालें आने वाली पीढ़ियों को दी जा सके। अपने बच्चों के लिए कुछ अच्छे और सच्चे किस्से सहेजिये।   साथ ही कुछ लोग इन तथाकथित समझदारों से बिल्कुल उलट होते हैं जिन्हें नफा- नुकसान ज्यादा समझ नही आता। तो, ये सिर्फ अपने

अपनी भूमिका खुद चुनें

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  आज शुरुआत एक कहानी से करते हैं या कहें कि आज सिर्फ कहानी...।   एक व्यक्ति जंगल से गुज़रता है तभी उसे एक लोमड़ी दिखाई देती है जो पूरी तरह अपाहिज और लाचार नज़र आती है। वह सोचता है की ये लोमड़ी जीवित कैसे होगी ? वो वहीं रुक कर देखता है। कुछ समय बाद वो देखता हैं कि एक शेर अपने शिकार से साथ आता है और शिकार का कुछ हिस्सा लोमड़ी के लिए छोड़कर चला जाता है। वह आश्चर्यचकित रह जाता है कि शेर लोमड़ी को कोई नुकसान नहीं पहुँचाता साथ ही उसे भोजन भी उपलब्ध कराता है। इसके बाद वह जंगल में ही रहने का मन बना लेता है और सोचता है कि भगवान जैसे इस लोमड़ी के लिए भोजन का इंतज़ाम करतें हैं उसी प्रकार मेरे लिए भी करेंगें। मेरे जीवन की व्यवस्था भगवान जरूर करेंगें।   इसके बाद वो इंतज़ार करता रहता है और दिन बीतते जातें हैं। दो दिन तक कोई नहीं आता अब वो एकदम कमज़ोर हो जाता है फिर भी सोचता है भगवान अवश्य कुछ करेंगे। अगले दिन एक संत जंगल से गुजरते हैं और उस व्यक्ति पर उनकी नज़र पड़ती है। संत उसके पास जाकर उससे सब माज़रा पूछते हैं। संत मुस्कुराते हैं और कहतें हैं कि भगवान ने तुम्हे ग्राही नहीं दाता की भूमिका दी है। तुम

अच्छाई पर भरोसा और उसकी कद्र...आप करतें है ?

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वैसे आपका जवाब क्या है ? "हाँ ", ज़रा ठीक से सोचिए यकीनन "हाँ " । अच्छा चलिए आपकी बात मान लेते हैं, वैसे आज यही(मानना) विषय भी है जो आप आगे समझ जाएंगे।        क्या आपने कभी महसूस किया है कि ये व्यक्ति(मतलब सामने वाला व्यक्ति) अच्छे होने का अभिनय कर रहा है, या शायद इसका मन्तव्य कुछ और है भले ही वो मंतव्य आपके समझ न आ रहा हो। मेरा ख़याल है कभी-न-कभी आपको जरूर ऐसा महसूस हुआ होगा। ऐसा दरअसल होता क्यों है ? क्योंकि हम कई बार ऐसे मीठे बोलने वाले लोगों के झांसे में आकर धोका खाये हुए होतें हैं या इस तरह के किस्सों से वाकिफ़ होते हैं जिनमे विलन मीठी छुरी की तरह होते हैं।   तो, ये बातें हम कर क्यों रहे हैं ? क्या आपको नहीं लगता कि आपकी इस तरह की मानसिकता( ऊपर वर्णित) अच्छाई से भरोसा उठता हुआ दर्शा रही है। इससे सिध्द होता है कि कहीं-न-कहीं आप ये मानते हैं कि कोई इतना अच्छा कैसे हो सकता है ? इसकी निःस्वार्थ मदद के पीछे भी शायद कोई स्वार्थ छिपा है।           मेरा ये कहना है कि हो सकता है कि कुछ लोग वाकई में मीठी छुरी होतें हैं लेकिन क्या इसकी सज़ा हम बाकियों को भी देंगे ज

मेहनत का घड़ा

  देखिये इसकी भूमिका में पिछले ब्लॉग में दे चुकी हूँ, तो उसे भी ध्यान में रखिएगा। आपकी ज़िंदगी मे कितनी समस्याएँ हैं ना परिवार, नौकरी, रिश्ते, असफलताएं आदि आदि अनिश्चितता से भरा जीवन। सबसे बोझिल और कॉम्प्लिकेटेड(जटिल) अपनी ही ज़िन्दगी लगती है, हेना ?   लेकिन मेरा मानना है कि ऐसा लगभग लगभग सभी को लगता है। मतलब की सभी की ज़िंदगी मे समस्याएं हैं भले ही अलग अलग स्वरूप में जैसे परिवार की, स्वास्थ्य की, नौकरी की या इन सब की मिलीजुली । सभी को लगता है उनकी समस्या सबसे बड़ी है।   दरअसल, ज़िन्दगी हर कदम इक नई जंग है... यदि ये नहीं तो कोई और समस्या आ जाएगी। और सच पूछिए तो उनका आना मुनासिब भी है क्योंकि जैसे इंसान के पाप के घड़े वाली कहानी आपने सुनी होगी वैसे ही मेरा मानना है कि इंसान का मेहनत का घड़ा भी होता है। जैसे जैसे आपका मेहनत का घड़ा भरता जाएगा सफलता आपके करीब आती जाएगी। तो ये मुश्किलें तो आपका घड़ा जल्दी भरने में मददगार हुई ना । जितनी ज्यादा मुसीबत आप देखोगे आपका मेहनत का घड़ा उतना जल्दी भरेगा। साथ ही कई बार ऐसा भी होता है कि बहुत मेहनत के बाद भी हमे सफलता नहीं मिलती तब भी मेहनत का घड़े पर यकी

छात्र जीवन मे हीरोपंती...

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   कभी-कभी हमें महसूस होता है कि ज़िन्दगी में सारी समस्याएं एक साथ टूट पड़ी हैं और खत्म होने का नाम ही नहीं ले रही। लगता है जैसे सब कुछ करते हुए भी हम कुछ नही कर पा रहे और पता नही क्यूँ इन असफलताओं के स्वयं के बोझ के साथ-साथ अपेक्षाओं का बोझ बढ़ता जा रहा है।   तब लगता है जैसे परिवार को समझ क्यों नही आता कि उनसे ज्यादा हम पर बीतती है दिन-रात मेहनत के बाद असफल होने में भला किसे मज़ा आता होगा? क्या हम तैयारी करने वालों से ज्यादा हमे तैयारी करते देखने वाले ज्यादा थक गए हैं? तो फिर कैसे वो अपना ज्ञान झाड़ कर हमारी ज़िंदगी पर सवाल दाग गायब हो जाते हैं। तो क्या कर सकते हैं हम ऐसी परिस्थिति में ? जवाब सवाल जितना ही जटिल है। हमे सारी चीजों को गौर से देखना चाहिए और इन सब से परे हटकर निरीक्षण करना चाहिए कि आखिर हो क्या रहा है ? किसी फिल्म जैसा नहीं लग रहा ?   दरअसल जब आप सफलता के बहुत क़रीब होते हो तो समस्यायों की संख्या और तीव्रता दोनों बढ़ जाती है। एक महिला तैराक जो इंग्लिश चैनल पार कर रही थी किनारे से सिर्फ कुछ मीटर दूरी पर हार मान गई यदि वो एक बार ओर दम भर लेती तो रिकॉर्ड बनाती। इसी तरह सफलत

कुछ तो लोग कहेंगे....

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आज के जमाने में फटी जीन्स स्टाइल स्टेटमेंट है लेकिन कुछ सालों पहले ऐसा करने पर लोग कितनी बातें बनाते थे। वैसे आप कहेंगे कि बनाने वाले आज भी बाते बना ही लेते हैं और आप सही भी कह रहे हैं लेकिन मुख्य बात यह है कि क्या आज उनकी बातें बनाने का जीन्स पहनने वाले पर फर्क पड़ता है ?   बेशक नहीं बल्कि फटी जीन्स पहनकर उनका स्वैगर और बढ़ जाता है। मतलब आजकल का फैशन या आजकल की पीढ़ी "बेफिक्रे" है। ज्यादा मत सोचिए, मैने ये फ़िल्म(बेफिक्रे) नहीं देखी है तो यहाँ संदर्भ अलग है।   तो आज के इस अचानक शुरू होने वाले ब्लॉग के इंट्रो से आपको क्या समझ आया..? ये बताता है कि सही लिहाज़ में बेफिक्रे बनने में कोई बुराई नही है। मतलब आपको लोगो या उनकी बातों की बजाए अपने हिसाब से काम करना चाहिए । इससे फायदा यह होगा कि आप कम से कम एक इंसान को तो खुश रख पाएंगे और वो ख़ुद आप है, इसी के साथ आपकी खुशी से आपके अपने भी खुश होंगे। वह काम भी अच्छे से होगा फलतः लोग भी कहीं न कहीं खुश होंगे। और अगर आप लोगो को खुश करने जाओगे तो वो असम्भव किस्म की बात है जिसमे आपको अपना मन मारना पड़ेगा मतलब आप खुश नहीं, और बिना

पुरानी बात...लेकिन , हर थोड़े दिन में पढ़ने लायक

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आज में अपनी कुछ पुरानी बातों को मतलब पहले लिखीं गई बातों को आपके साथ साझा करना चाहूँगी। ऐसा इसलिए क्योंकि पुरानी होकर भी ये बातें कभी पुरानी नही होती और हमेशा प्रासंगिक बनी रहती है।    आप इसे मेरे जीवन का फलसफा(फिलोसोफी) समझ सकते हैं जिसे में स्वयं भी मन अशांत होने पर दोहराती रहती हूँ। ये बातें आपको फिर से आपके मूल स्वरूप में लाने में मदद करती है और विज्ञान का नियम है कि कोई भी वस्तु ज्याददेर तक अपने मूल स्वरूप से अलग नहीं रह सकती।  तो, ये ब्लॉग भी अपने मूल स्वरूप में ही मैं प्रस्तुत कर रही हूँ शायद आपको थोड़ा लम्बा लगे लेकिन उम्मीद है रसपूर्ण लगेगा तो लम्बाई आप भूल जाओगे। और यदि फ़ोटो के स्वरूप में पढ़ने में मुश्किलात आये तो मुझे इत्तिला करें।

ज़िंदगी में गाने या गानों में ज़िंदगी...

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वैसे शीर्षक अपनी कहानी आप बयाँ करने में सक्षम है, इसलिए चलिए सीधे आगे बढ़ते हैं। मैंने आजतक किसी इंसान को नहीं देखा जो गानों से सरोकार ना रखता हो। आजकल के युवाओं की बात करने की तो जरूरत ही नहीं और इनके आगे और पीछे की पीढ़ी भी बिना अपवाद संगीत(गाने) से जुड़ी हुई है लेकिन यदि आप और पुरानी पीढ़ी को देखेंगे तो वे भी पुराने गीत या भजन जानते ही होंगे।   तो, यह सब बातें किस ओर इशारा करती है? ये बताती है कि ज़िन्दगी के हर पड़ाव या पल में संगीत प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष तौर पर मौजूद रहता है। आप चाहे कहीं भी हों किसी भी मूड में हों संगीत के विशाल सागर में आपको उस हिसाब का मोती मिल ही जायेगा। संगीत न सिर्फ आपको सुकून, शांति व मनोरंजन देता है बल्कि वह आपका साथ भी देता है। हर एक भाव मे गाने आपका साथ दे सकते हैं एक दोस्त की तरह।   मेरे हिसाब से सबसे कठिन समय अर्थात मुश्किल दौर में इनका महत्व सबसे ज्यादा समझ आता है । तो, संगीत का गुणगान यहीं खत्म कर मैं कुछ गानों की सूची देना चाहती हूँ जिसकी जरूरत आजकल की ज़िन्दगी में सभी को पड़ती है। इस सूची में क्रम का महत्व नहीं है लेकिन हाँ, पहला गाना वास्तव में प्

फिलोसॉफी झाड़ना....

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फिलोसॉफी झाड़ना, शिर्षक थोड़ा ज्यादा देसी हो गया नई। दरअसल इसी शब्द से मेरी बात स्पष्ट हो पाएगी। हमारे समाज मे प्रचलन है अपनी-अपनी फिलोसॉफी(दर्शन) झाड़ने का जो एक अच्छी बात भी है। क्योंकि विचार फैलाने, चर्चा करने में भला क्या बुराई| दरअसल बुराई तब आती है जब लोग अपनी फिलोसॉफी दूसरों पर थोपने लगते हैं और अपनी फिलोसॉफी को सही व सामने वालों की फिलोसॉफी को गलत सिद्ध करने पर तुल जाते हैं।    चलिए अब मुद्दे पर आगे बढ़ते हैं। मैं खुद भी यहाँ फिलोसॉफी ही झाड़ने वाली हूँ। मुद्दे की बात यह है कि हर फिलोसॉफी का मूल उद्देश्य होता है खुशी । मतलब कोई भी फिलोसॉफी अपनाओ, आप खुश हो तो यह फिलोसॉफी आपके लिये सही; अब यह जरूरी नहीं कि ये दूसरों के लिए भी सही हो ।   मान लो आपको पसंद है आज के लिए ही जीना मतलब बचत नहीं करना और हर पल का मज़ा लेना । इस तरह जीना की कल हो न हो..जो खाना है जी भर कर खाओ, जो करना है अभी ही कर लो । उम्मीद है इतने से आप समझ गए होंगे मेरा भाव, और शायद यह भी की मेरी फिलोसोफी भी यही है। हाँ, कुछ हद तक आपका अनुमान सही भी है।    तो चलो दूसरे किस्म के लोगो की बात करते हैं वो लोग जिन्हें भवि