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Showing posts from 2021

क्या कभी आप "Booster" बने हैं ?

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हाँ, तो क्या आप कभी बूस्टर बने हैं ? नहीं तो फिर अब बन जाइए। आपके आस पास नजर दौड़ाइये क्या कुछ लोग ऐसे नजर आते हैं। जिन्हें देखकर आपको महसूस हो "वाकई ये अच्छा काम कर रहे हैं" हो सकता है आप भी इन लोगो में से हों। और हो सकता है आप ये भी जानते हो कि कुछ अच्छा करने के लिए व्यक्ति को हमेशा अपने दायरे को बढ़ाना पड़ता है। कोई अच्छा काम कम्फर्ट जोन को तोड़कर ही किया जा सकता है जो अतिरिक्त ऊर्जा या एक्स्ट्रा एफर्ट मांगता है। तो बात ये है कि कई बार अच्छा कार्य करने वाले व्यक्ति के पास इस अतिरिक्त ऊर्जा की कुछ कमी हो जाती है क्योंकि आखिर वो भी एक इंसान है। इस कमी की पूर्ति कईबार बहुत छोरी-छोटी बातों या प्रोत्साहन से की जा सकती है। जैसे झुग्गी झोपड़ी के बच्चों को पढ़ाने जाने वाली एक रिटायर्ड शिक्षिका' जब अतिरिक्त शारीरिक श्रम के कारण इस अच्छे कार्य को करने के लिए निरुत्साहित हो गई तभी एक घटना ने उन्हें फिर से प्रेरित किया । हुआ ये था कि झुग्गी झोपड़ी बच्चा खेलते समय पास के नाले में गिर गया और भीग गया जब उसे शिक्षिका द्वारा नहाकर कपड़े बदलने के लिए कहा गया तो उसका जवाब था मेरे

उपेक्षा

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कोरोना या कोविड-19, कितने समय से जानते हैं इस बीमारी के बारे में ? यही कोई 2 साल...और इतने कम समय में इसके इलाज के लिए कई सारे उपाय खोज लिए गए हैं जिसमे सबसे प्रभावी वैक्सीन को माना जा रहा है । कुछ लोग इस पर सवाल उठा सकते हैं कि अभी तक इसका कोई अचूक समाधान नहीं है पर फिर भी कुछ न कुछ है तो सही ना, कोई आपसे ये तो नहीं कह रहा ना कि ये तो होगा ही, आपके पास इसे सहने के अलावा कोई चारा नहीं। जब इतने कम समय में इस समस्या के लिए कुछ किया जा सकता है तो उस समस्या के लिए क्यों नहीं जिससे आधी दुनिया कहीं न कहीं परेशान है। और तो और ये समस्या कोई साल दो साल से नहीं बल्कि मानव के उत्पत्ति के साथ कि ही मानी जा सकती है। अब भी शायद नहीं समझे होंगे तो चलो मै बताती हूँ, वो है माहवारी। अब आप कहेंगे ये तो कोई समस्या नहीं है। तो, आपकी अधूरी जानकारी को विस्तार दीजिये और इस समस्या के प्रति सवेंदनशील बनिए। बेशक सभी महिलाओं को माहवारी के समय परेशानी नहीं होती पर कइयों को होती है और इनकी संख्या लगातार बढ़ रही है। माहवारी के दौरान महिलाओं को हार्मोन्स परिवर्तन के कारण जो मानसिक त्रास(मूड ऑफ) होता है उसे छोड़ भ

Process of Healing / "राहत की प्रक्रिया"

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हर इंसान राहत चाहता है कोई दर्द से तो कोई तकलीफों से। ये दर्द और तकलीफ मानसिक भी हो सकती है, शारिरिक भी । तो आज हम इन सबसे राहत की जो प्रक्रिया होती है उसकी चर्चा करेंगे । ये बस एक चर्चा होगी कोई उपाय नहीं या निष्कर्ष नहीं। हालांकि हो सकता है चर्चा के दौरान हम किसी उपाय तक पहुँच जाए। देखा जाए तो ये बस मेरे अनुभवों और निरिक्षणों को साझा करने की भाँति है। तो चलिए शुरू करते हैं, अगर हम किसी शारिरिक पीड़ा की बात करें जैसे मान लिजिए आप दिनभर शारिरिक श्रम या वर्जिश के चलते थक गए हैं या ये थकान कई दिनों कि है। तो क्या होता है जब आप विश्राम की अवस्था में जाते हैं मतलब रात को या किसी भी समय जब आप लेटते हैं तब कुछ समय बाद आपको क्या महसूस होता है? यकीनन आपका दर्द बढ़ जाता है आपके शरीर के वे सभी अंग जो थक गए थे अब पहले से ज्यादा दर्द करने लगते हैं कई बार ये दर्द इतना बढ़ जाता है कि आप सो भी नहीं पाते। तो ये सब क्या हो रहा है ?आपको लगता है, इससे अच्छा तो आराम ही नहीं करना चाहिए था ।जबकि आराम तो एक राहत की प्रक्रिया है आपको शरीर की थकावट दूर करने का जरिया | पर इस प्रक्रिया ने आपका दर्द बढ़ा दिय

रिलेक्स मोड

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कभी-कभी व्यक्ति को कुछ समय के लिए रिलेक्स मोड में चले जाना चाहिए इस दौरान ज़िन्दगी को कुछ धीमी गति से जीना चाहिए...अपनी पसंद की चीजें करना अपने मन की सुनना और ज़िन्दगी की चूहा दौड़ से अलग होकर कुछ ऐसे पल बिताना जो आपको अहसास कराएं की हाँ, मै खुश हूँ अब भी इस समय भी, मेरे आस पास सब कुछ वाकई कितना अच्छा है । पढ़ाई या काम के बोझ को थोड़ा किनारे कर ज़िन्दगी के अन्य पहलुओं पर नज़र डालने वाला समय जो कहीं न कहीं आपको प्रेरित भी करता है क्योंकि कई बार ऐसा भी होता है कि मेहनत और असफलता के बाद हम हताश हो जाते हैं और सोचते हैं कि मैने इसे पाने के लिए क्या नहीं किया, हर पल इसके प्रति समर्पित रहा, हर समय अनुशासन का जीवन जीया, कभी समय बर्बाद(तथाकथित) नहीं किया, पढ़ने या काम के अलावा कभी किसी चीज पर ध्यान नहीं दिया, पर देखो, तब भी मुझे असफलता मिली। ये मायूसी आपको हताश कर देती है, आपके विचारों की नकारात्मक बना देती है आपको स्वयं पर एक तरह से तरस या दया आती है कि इसके लिए सारी इच्छाओं का दमन किया और उसका क्या सिला मिला। तो, जब आप इन सब(कार्यप्रणाली) के बीच थोड़ा समय अपने लिए निकालेंगे तो आपको

कुछ पंक्तियाँ

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समुद्र सी विशाल बन जिसका कोई किनारा नहीं, जिसका कोई सहारा नहीं कोई नदी मिले न मिले, अपना वजूद कायम तब भी रख किसी बारिश पर निर्भर नहीं रह, स्वयं को विस्तार दे कोई नहीं हो तब भी अपनी मस्ती में मगन रहना सीख सबके साथ खिल खिला लेकिन, साथ का इंतज़ार न कर तू चल, बस चलती जा, मंज़िल जरूर आएगी ये राहे भी कहाँ बुरी है, बस इनके मोह में न पड़ बहुत दूर जाना है तुझे, अपने आप को संभाल अपनी कमजोरियों से डटकर लड़, इनमें समय ज़ाया न कर तू अकेली नहीं है बहुत से सपने,बहुत सी उम्मीदें संग है तेरे याद रख तेरा मकसद, ये जीवन, ये समय इन व्यर्थ की बातों में न उलझा आगे बढ़, आगे बढ़ समुद्र सी विशाल बन

ज़िन्दगी के उसूल

हर व्यक्ति के कुछ मूल्य होते हैं कुछ उसूल होते हैं जिनके आधार पर वह जीवन जीता है। ये साधारण सी बात है और अच्छी भी पर क्या होता है जब आप अपने उसूलों के आधार पर दूसरों को आँकना(जज करना) शुरू करते हैं, वो भी लोगो के बाह्य स्वरूप या उनकी कुछ आदतों के आधार पर। ये कहाँ तक सही है ? सही गलत के फैसले के लिए मैं अपने कुछ अनुभव साझा करना चाहूँगी। मै और मेरी दोस्त पढ़ने के लिए एक बड़े शहर में गए और हम छोटे शहर के मध्यम वर्गीय परिवार से ताल्लुक रखते हैं। हम वहाँ जिस जगह रहते थे उसमें आठ से दस लड़कियाँ थीं । सभी काफी अलग थीं हमें वहाँ शुरू में काफी अजीब लगता था उन लड़कियों का पहनावा उनके द्वारा फ़ोन पर लड़कों से बात करना और हम तो हतप्रभ रह गए जब उन्होंने हमसे पूछा तुम्हारा bf है ? ये सवाल जैसे हम पर वज्र की तरह गिरा, ऐसा लगा जैसे किसी ने हमारा अपमान कर दिया हो । आखिर वो हमें ऐसा कैसे समझ सकतें हैं ? "ऐसा" क्या मतलब है इस शब्द का क्या सोचते थे हम उन लड़कियों के बारे में, कभी तो ये गाना गाते थे हम अपनी स्थिति पर की "ये कहाँ आ गए हम.." मतलब साफ था अपने पैमाने , अपनी सोच के आ

इच्छाएँ और आत्म नियंत्रण

  कहते हैं इच्छाएँ व्यक्ति को गुलाम बना देती है तथा इच्छाएँ ही मनुष्य के दुःख का कारण भी हैं। वहीं, आत्म नियंत्रण व्यक्ति को गंभीर, विवेकशील और सन्तुलित बनाता है।   मेरे अनुसार ये दोनों ही एक दूसरे के बिना अपूर्ण हैं। इच्छाओं की अनुपस्थिति व्यक्ति को अकर्मण्य और आलसी बना देगी तथा जीवन काफी नीरस हो जाएगा वहीं आत्म नियंत्रण की अधिकता व्यक्ति को जोखिम उठाने से रोकेगी साथ ही उसे लचीला(डायनामिक) की बजाए कट्टर(रिजिड)  बना देगी।  अतः, दोनों में समन्वय व सन्तुलन आवश्यक है इच्छाएँ यदि आत्म नियंत्रण के साथ कि जाए तो व्यक्ति अधिक खुशहाल जीवन जी सकता है।   आप इसे किसी गाड़ी के इंजन और ब्रेक के समान समझ सकते हैं जीवन की गाड़ी में इच्छाएँ इंजन है, तो आत्म नियंत्रण ब्रेक। ब्रेक की मौजूदगी ही गाड़ी के इंजन को रफ्तार पकड़ने का आत्मविश्वास दे सकती है और इसी प्रकार इंजन के बिना ब्रेक का कोई अर्थ नहीं ।  इसलिए व्यक्ति को जीवन मे इन दोनों में उचित सन्तुलन बनाना चाहिए। कहते हैं जहां चाह वहाँ राह इसलिए चाह करना पहली सीढ़ी है। इसमें आत्म नियंत्रण उस चाहत को पाने के मार्ग में भटकाव को तो रोकेगा ही साथ ही अवांछित चा

रात के बाद ही तो सवेरा होता है🌞

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 सुबह....सुबह शब्द अपने आप में ही कितनी संभावनाएं, कितनी ऊर्जा, कितनी सकारात्मकता समेटे है। सुबह हम जब हम गुड मॉर्निंग विश करते हैं कैसा भी मूड हो अच्छा महसूस होता है एक नई आशा मिलती है।  ये नई आशा की किरण हमे हर मुसीबत में धैर्यवान रखती है, एक आवाज़ आती हो जैसे अंदर से "सब ठीक हो जाएगा" और ठीक हो भी जाता है, और कभी नहीं भी होता तो हम उसे ठीक मानने लगते है मतलब अपनाने लगते हैं स्वीकार करने लगते हैं। इस तरह ये एक दिलासे की तरह है जो हमे प्रकृति से मिलता है।  प्रकृति से मिलता है अतः यह हमेशा मौजूद होगा और अपरिहार्य रूप से सत्य भी होगा। इस तरह यह अपरिहार्य सत्य है कि हर शाम के बाद सुबह आएगी ही और वो सुबह हमे बाह्य के साथ-साथ आंतरिक ऊर्जा और प्रकाश देगी।   इसलिए जब आप बहुत मुश्किल में हों कोई रास्ता नहीं नज़र आ रहा हो कोई शब्द या कोई वाक्य ऐसा न हो जो आपको उम्मीद दे सके याद रखिए हर रात की सुबह होती है कुछ मत कीजिये बस इंतज़ार कीजिए।  विश्वास रखिए कि " दिल नाउम्मीद नहीं नाकाम ही तो है,  लम्बी है गम की शाम, लेकिन शाम ही तो है"  मतलब सुबह जरूर होगी।