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आखिर क्यूँ मित्र हर रिश्तों से ज्यादा अहमियत रखता है

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आप में से हर किसी ने कहीं न कहीं ये लाइने पढ़ी या सुनी होगी की "दो अक्षर की "मौत" और तीन अक्षर के "जीवन" में  ढाई अक्षर का   " दोस्त " बाज़ी मार  जाता हैं.           साथ ही हर किसी की ज़िन्दगी में एक राज़दार की भूमिका अधिकतर एक दोस्त ही निभाता है और यदि ऐसा कोई नही है तो वो इंसान ऐसे दोस्त की तलाश में रहता है ।          आखिर क्यूँ हम अपनी अच्छी बुरी हर प्रकार की बातें बेझिझक दोस्त के सामने कह देते हैं । क्यूँ हर रिश्ते माँ, पिता, भाई, बहन, पति, पत्नी आदि सभी में एक दोस्त की छवि की दरकार रहती है ।           चलिये ऐसे ही कुछ सवालो के उत्तरो की चर्चा करते हैं। देखिये एक दोस्त दरअसल हर रिश्ते की परछाई होता है । वो बुरी बातों पर पिता की तरह सख्त होता है, तकलीफ़ में माँ की तरह देखभाल करता है, भाई की तरह मज़बूती से हमेशा साथ देता है तो बहन की तरह गलतियों पर सजा से बचाता भी है ।            लेकिन सबसे अहम बात की कभी जताता नही और ना ही आपके ढेर सारी बातें(राज़) जानने के बाद इनका गलत इस्तेमाल या उजागर करता है। आपकी किसी भी निजी समस्या(बात) का असर आपकी दोस्ती पर नह