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Showing posts from April, 2016

थोड़ी अज्ञानता भी अच्छी है

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              मैंने एक फिल्म देखी NH- 10 | मुझे काफी पसंद आई क्योंकि मेरे लिए वो शोकिंग किस्म की थी क्योंकि उसमे मैं जब भी अंदाजा लगाती की अब एसा होगा तो वह हमेशा गलत निकलता   | खैर अब मुद्दे पर आतें है मैं यंहा आपको इस फिल्म की समीक्षा देने तो बैठी नही हूँ इसकी चर्चा तो मेने इसलिए की क्योंकि यंही से मेरे मन में एक विचार उठा था |               इस फिल्म में जब पुलिस अफसर जीब चलाते हुए अभिनेत्री से बातें करता है तो बातों ही बातों में उससे पुछता है की आपकी जाति क्या है ? आपकी गोत्र क्या है ? अभिनेत्री का जवाब होता है मुझे नही पता |               संवाद चाहे जो भी हो या जिस भी अर्थ में हो मुझे इस द्रश्य से एक विचार आया की हम में से अधिकतर लोगो को इन( फिल्म के पुलिस अफसर के ) प्रश्नों के उत्तर मालूम होंगे और अगर मैं सही हूँ तो अधिकांश मध्यम वर्गीय और निम्न वर्गीय परिवारों को इन प्रश्नों के जवाब रटें हुए होंगे साथ ही शायद (फिल्म में देखकर लगा) उच्च वर्गीय परिवारों में से कम को ही इनके जवाब पता हों ? विचार यह है की अगर हम धीरे-धीरे इन सब जवाबों से अज्ञानी बन जाएँ तो ? मेरा कहने

किसान vs. PM

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              नही नही यंहा शीर्षक का अर्थ किसान vs. प्राइममिनिस्टर नही बल्कि मैं तो यहाँ किसानो तथा pm अर्थात् particulate matter की बात करने जा रही हूँ | अगर हम pm को आम भाषा में समझना चाहें तो यह हवा में प्रदुषण के छोटे-छोटे कण है | यह प्रदूषित वातावरण का स्तर जानने में कम में आता है |               आज शाम के वक्त जब मैं अपने आँगन में गई तो मुझे सभी ओर काले-काले टुकडे दिखाई दिए लगभग सभी पाठक इनसे रूबरू हए ही होंगे ओर जानते होंगे की यह खेतो के जलाने से उड़े कण है | आज दिल्ली समेत देश के कई बढे शहर प्रदुषण (pm) की समस्या से जूझ रहे है जिसमे ये कण समस्या को अधिक बाढा देते हैं |                            खेतो में गेंहू की फसल काटने के बाद जो पौधो के तने (ठूंठ) शेष रहते है (इन्हें नरवाई भी कहते हैं) उन्हें अक्सर जला कर साफ़ किया जाता है |               लेकिन इतना शोर-शराबा होने के बाद भी किसान मानते क्यों नही ? क्यों वे खेतों में आग लगा कर ही नरवाई से निजात पाना चाहते हैं ?               सुना है की इनसे तो खेत हंकवाकर अर्थात् हल चलवाकर भी इनसे आसानी से छुटकारा पाया

नजरिया आपकी सोच बदल सकता है

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नजरिया सबकुछ बदलकर रख देता है | इसी के चलते घरवालो का फिक्र करना  आपको रोक-टोक लगने लगता है |       जरा सोचें की अगर यह सब बंद हो जाये तो, यकीन मानिये, एक दिन आपको बुरा लगने लगेगा की मुझे कोई पूछने वाला नही है, सुबह से मैंने कुछ खाया की नही ? कहाँ हूँ कहाँ नही किसी को परवाह ही नही है ? तब आपको समझ आएगा की इन सब बातों की क्या कीमत होती है |       देखा जाए तो अक्सर लडको के मामले में फिक्र से सम्बंधित यही छोटी-मोटी बातें उनके द्वारा रोक-टोक के तौर पर देखी जाती हैं वहीँ लड़कियों के मामले इसका ठीक उलटा होता है यहाँ कई बार बड़े-बड़े बंधन फिक्र के नाम पर उनपर लाध दिए जातें है जिन्हें वे सहर्ष स्वीकारती है | कई बार उन्हें इल्म भी नही होता की उनका जीवन उनका ही नही रह गया वो तो बस हर किसी की आज्ञापालक और सबको संतुष्ट रखने की कोशिश करने वाली बनकर रह गई है | लेकिन इसमें यह बात भी देखी जानी जरुरी है की माँ-बाप को लड़कियों की ज्यादा फिक्र है अथार्त वे उन्हें ज्यादा प्रेम करते है और उन्हें हर मुसीबत से सुरक्षित रखना चाहते है, हर परिस्थिति में लड़ना सिखाना चाहतें हैं |      

क्या आप गाँधी बन सकते है ?

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मैंने एक वाक्य सुना की अरे वो अंग्रेजो का जमाना था, हम गुलाम थे उन परिस्थितियों के वशीभूत गाँधी जी ने सब किया | मतलब अगर हम भी उनकी जगह होते तो उनके जैसा काम करके दिखा सकते थे |             जरा सोचिऐ गाँधी जी को क्या जरुरत थी अंग्रेजो से लड़ने की वो तो एक वकील थे चाहते तो आराम से वकालत करके अच्छा जीवन बिता सकते थे | और इसी तरह बहुत से अन्य क्रन्तिकारी जैसे नेहरु, आज़ाद, सुभाष चन्द्र बोस रईस खानदान से थे, बोस तो सिविल सर्वेंट जैसे उच्च पद भी पा चुके थे फिर आखिर क्या चाहिए था उन्हें ?             फिर भी अगर आप में से किसी को लगता हे की कोई बड़ी बात नही है, तो ठीक  है आप जरा आज की परिस्थितियों पर गौर फरमाइए क्या कुछ गलत नही हो रहा ? सब कुछ ठीक है ? अगर नही तो आप क्यों आराम से बैठे हुए है बनकर दिखाइए गाँधी ! करिए आन्दोलन, विरोध प्रदर्शन, जाइये जेल, खाइए लाठियां | क्या लगता है कर पायंगे आप ? चलिए ये सब नहीं तो कुछ आसान ही कर लिजिए जो कुछ कर रहें हैं उनका साथ देकर |             यदि हाँ तो शुक्रिया इतना सोचने भर के लिए और यदि नही तो कृपया बोलने से पहले जरा सोचिये

क्या आप जानते हैं हाड्रोजेल के बारे में ?

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इस तकनीक के माध्यम से आपको पौधो यहाँ तक की फसलों में भी एक बार पानी डालने के बाद ढाई से तीन महीने तक पानी डालने की जरुरत नही |             यह कोई ड्रिप प्रणाली या पानी के चक्रीय क्रम की कोई तकनीक भी नही है यह संभव है पूसा   हाड्रोजेल की मदद से | आइये जानते हैं इसके बारे में,             आप में से अधिकतर लोगो ने बेम्बू (बांस) प्लांट को ख़रीदा या देखा जरुर होगा जिसे हम इनडोर प्लांट के रूप में जानते हैं | मेने भी इस सुन्दर प्लांट को एक सुपर मार्केट से ख़रीदा लेकीन मुझे इसे दूसरे शहर ले जाना था वो भी ट्रेन से, तो मुझे फिक्र हुई की यह सफ़र के दौरान सुख कर ख़राब न हो जाये | फिर जब मेने उसकी जड़ों पर गौर किया तो उसमे एक प्रकार का चिपचिपा जेल लगा हुआ था समझ नही आया की यह क्या है तो मेने सोचा शॉप पर भी तो यह काफी दिनों से बिना पानी रखा होगा तो किसी तरह घर भी सुरक्षित पहुच ही जायेगा |             लेकिन कई दिनों बाद जब मैं अख़बार पढ़ रही थी तो मेने इस जेल के बारे में पढ़ा तब जाकर यह माजरा समझ आया |   Ø आखिर क्या हे यह जेल ?     - यह इंडियन काउंसिल ऑफ़ कल्चर रिसर्च