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Showing posts from 2017

छोटी सी बात

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आज में आप लोगो से छोटी सी बात साझा करने जा रही हूँ। वैसे कहतें हैं कि नेकी कर दरिया में डाल लेकिन मैं आप लोगो को बता रही हूँ इसलिए क्योंकि शायद ये आपको थोड़ा प्रेरित कर दे।    ख़ैर इन भारी भरकम वाक्यों से आप यह मत सोचने लगना की मैंने कुछ बड़ा किया है कृपया शीर्षक ध्यान में रखें।    मैं पिछले कुछ सालों से अपने घर के लिए मिट्टी के गणेश जी बना रही हूँ । पिछले साल एक और परिचित के लिए भी मतलब दो प्रतिमाएं मैंने बनाईं थीं। इस साल मैंने चार प्रतिमाएं बनाई अन्य लोगो के लिए भी ।    है ना छोटी सी बात लेकिन कहने का मर्म यह है कि प्रकृति को बचाने के लिए एक छोटी सी पहल । मैंने कुछ बड़ा न सही मेरे स्तर पर कुछ तो किया किसी और के लिए नही अपने लिए किया, अपनी आत्मसंतुष्टि के लिए किया। और ऐसी ही छोटी चीजे में करती रहती हूँ मसलन कभी वाहन, सड़क आदि सार्वजानिक स्थलों पर कचरा नही फेंकती , गीला कचरा सूखा कचरा पृथक    रखती हूँ, निजी की बजाए सार्वजानिक वाहन का उपयोग करने की कोशिश करती हूँ आदि।    सूची देने के बाद भी कहूँगी की सूची नही देना चाह रही। ये चाह रही हूँ कि आप भी ऐसी छोटी चीजें कर के देखिए यकीन मानि

छोटी-छोटी खुशियाँ

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एक शाम  हल्की बारिश हो रही थी की तभी अचानक बिजली चली गई। घर में मैं , मम्मी मेरे बड़े भैया और ममेरी बहन थे। हमारे मोबाइल और पावर बैंक सभी मे चार्ज़िंग कम थी और बारिश के चलते बिजली देर से आने का अनुमान था।      आज आप लोगो को लग रहा होगा जैसे मै कोई उपन्यास लिखने बैठ गई हूँ । माफ़ कीजियेगा इस किस्म के वर्णन का इरादा नहीं था लेकिन जो मैं कहना चाह रही हूं उसके लिए थोड़ा बैकग्राउंड बताना जरूरी था।      तो चलिए आगे चलते हैं । हम सब बरामदे में कुर्सी लगाकर बैठ गए जहां बारिश की हल्की फुहार और मिट्टी की सौंधी खुशबू वाली हवा आ रही थी। आप कहेंगे मै फिर शुरू हो गई । लेकिन ज़रा गौर कीजिए कि जब आप अपने इलेक्ट्रॉनिक गेजेट्स ख़ासकर मोबाइल से दूर रहते हैं तो छोटी-छोटी चीजों को महसूस कर पाते हैं अन्यथा तो बारिश के छीटें कब आकर चले गए आपको आभास भी नही होगा।      हाँ, तो बरामदे में बैठे हुए हम चारों ने सोचा कि चलो कुछ खेलते हैं । हमने "सी ओला ओला " से खेल शुरू किया जिसकी लाइने सिर्फ मुझे याद थी । शायद आप लोग खेल पहचाने नही होंगे । मैं थोड़ा बता दूँ की इसमें हम एक-दूसरे की हथैली पर हथैली रखते हैं कुछ

हिसाब से चलना.....

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हमें अक्सर शिकायत रहती है कि फलां इंसान हमारे हिसाब से नही चलता और यहाँ तक कि हम गहराई से सोचेंगे तो कोई भी हमारे हिसाब से नही चलता। मैं स्पष्ट करना चाहूँगी की यहाँ हम से तात्पर्य ख़ुद(मैं) से है।          हर जगह हम यह शिकायत देख सकते हैं पति-पत्नी/ बच्चे-माता-पिता/ कर्मचारी-नियोक्ता......अब यहाँ मैं लिस्ट बनाने तो बैठी नही हूँ तो, चलिये मुद्दे पर आते हैं । हम एक समय बाद चिढ़ जाते हैं यदि कोई हमारे हिसाब से न चले और इसका परिणाम या तो सामने वाला भुगतता है या मानसिक तनाव के रूप में हम स्वयं।        अब जरा गौर फरमाएं क्या आप खुद हिसाब से चलते हैं ? और किसी के हिसाब से तो छोड़िए क्या आप स्वयं के हिसाब से चलते हैं ? आप हमेशा अपने लिए कई तरह के हिसाब बनाते हैं जैसे कल से रोज सुबह सैर पर जाऊँगा/जाउंगी , अब से फिजूलखर्ची नही, अब से नशा बंद या छोटा-बड़ा किसी भी प्रकार का हिसाब हम कितनी ही बार बनाते हैं । पर ईमानदारी से कहिए इनमे से कितने हिसाब हम लागू करते हैं ? यक़ीनन, संख्या उंगली पर गिनने बराबर होगी।         तो इस बार का मेरा सरल सा लॉजिक यह है कि जब आप खुद अपने हिसाब से नही चल सकते तो दूसरों